Thursday, September 29, 2016

साथ तुम्हारा


साथ तुम्हारा पा के,ये जीवन,यूं खिल सा गया है,
जैसे ठहरी तंद्राओं को,इक वज़ूद सा,मिल गया है।

तुम्हारे इन हाथों में,जब भी कभी,मेरा हाथ होता है,
तो जैसे कि,मेरी खुदी का एहसास,तुम में खोता है।

तुम संग,मैंने जाना कि प्रकृति के रंग और भी हैं,
फूल,तितली,भंवरे,पंछी के गीत-गहन और भी हैं।

कि सब कुछ,लगे है कुछ अलग,और सुनहरा सा,
कि सोच पे से,जैसे उठ चला हो,धुंध का पहरा सा।

देखो जरा,इंद्रधनुष के ये रंग ज़्यादा चमकीले से हैं,
आज प्रकृति के,फैले राज़,जादा ही चटकीले से हैं।

कि आज ये धरती,आसमान,ये चाँद अपने से लगें,
जैसे प्रेम के,कई अध्याय,जेहन में एकसाथ जगें।

कि सूरज की,तपती लपट भी,शीतल सी लगती है,
और शीतल रात में,झुलसाती ख्वाहिशें,जगती हैं ।

सुबह की,मंद-मंद हवा,नए गीत गुनगुनाती सी है,
साँझ की,बोझिलता भी,नए उत्साह जगाती सी है।

कि तुमसे,मिलने को बेकरार,मन मेरा हो जाता है,
सामने तुमको,देख कर तृप्ति,और सुकून पाता है।

तुम संग,नया बंधन,कुछ अलग ही निराला सा है,
कि जैसे,सारा जहान मैंने,इन बाहों में सम्हाला है।

ये प्रेम बंधन,सृष्टि की हर जीवनी में,नज़र आते हैं,
ये बंधन,खुदा के साथ होने का एहसास दिलाते है।

काश कि! अपना ये संग-साथ,इतना प्रगाढ़ हो जाए,
मेरा तुम्हारा,वज़ूद मिट के,हम में तब्दील हो जाए।
                                                   
                                                                     जयश्री वर्मा
                                   

Friday, September 23, 2016

जल ही जीवन

जल के बिन किसी दशा में जीवन संभव नहीं हमारा,
जल संरक्षण ही अब रह गया जीवन का मात्र सहारा,
अन्धाधुन्ध जल दोहन से भविष्य बन रहा अंधियारा,
तब हाहाकार मचेगा जब,जल ही काल बनेगा हमारा।

जल,जंगल,जमीन स्थिति को गर हमने नहीं संवारा
डूबेगी सृष्टि उस सागर में जिसका कोइ नहीं किनारा
जलचर,थलचर,नभचर में ही है धरा का स्पंदन सारा
अंधाधुंध दोहन से बच पाएगा क्या ये संसार हमारा?

ये जीवन इसी लिए है क्योंकि धरती पर है जलनिधि,
इसे बचाने की कोशिश हमें करनी ही होगी हर विधि,
जल बिन तो यह धरती अपनी बन जाएगी शमशान,
शुष्क गृह कहलाएगी जीवन का न होगा नामोनिशान।

कठिन नहीं है बहुत सरल है जल संरक्षण का व्यवहार,
संरक्षण में चाहिए बस जागरूकता,ध्यान,ज्ञान-आधार,
जल क्षति बहुत हुई इसीसे,आज जल भी बना व्यापार,
जल के कारण ही है मिला हमें इस जीवन का उपहार।

जल जीवन है,जल औषधि है,जल सृष्टि और धरती है,
जल बर्बादी से आखिर जलनिधि की उम्र भी घटती है,
कुछ नियम हैं सीख सकें तो भविष्य भी सुरक्षित होगा,
जीवन सांस ले सकेगा तभी,जब जल संरक्षित होगा।

कुछ व्यवहार में लाने योग्य बातें....
जल संरक्षण होगा ......
जब घर का व्यर्थ जल गृह वाटिका के प्रयोग में आए,
जब टॉयलेट की फ्लश टंकी छोटे साइज़ की लगवाएं,
जब शेविंग समय नल की टोंटी लगातार खुली न छोड़ें,
घर की टपकती टोंटियों की तरफ अपना ध्यान मोड़ें।
जल संरक्षण होगा......
गर हम मुहीम छेड़ के बचे तालाबों को पाटने से रोकें,
जल संरक्षण होगा जब हम जंगल की कटान को रोकें,
जब अपनी सदानीरा नदियों को प्रदूषित होने से रोकें,
शासन-प्रशासन सक्रिय हो अपनी सारी ताकत झोंके।

उच्च शिक्षण तक जल संरक्षण अनिवार्य विषय बनाएं,
हर मानव अपने हिस्से का इक वृक्ष अपने हाथों लगाए,
जल ही जीवन इस स्लोगन का महत्व सभी को बताएं,
और जल संरक्षण की ये मशाल अगली पीढ़ी को थमाएं।

जल से पूर्ण धरती का सीमित जल ही है स्पंदन आधार,
ब्रह्माण्ड में हमें मिला इस जीवन का बहुमूल्य उपहार,
तो गर हम अपनी भावी पीढ़ी से करते हैं सचमें प्यार?
तो....
जल संरक्षण करके भविष्य पे करना होगा उपकार,
संरक्षण स्वयं ही होगा जब ये बन जाएगा व्यवहार।
                                            
                                                     (जयश्री वर्मा)

Tuesday, September 20, 2016

ज़िन्दगी क्या है ?

ज़िन्दगी क्या है ?

क्या ज़िन्दगी सवाल है ?
शायद ये सवाल है------
मुझे किसने है भेजा?कहाँ से हूँ मैं आया ?
क्या उद्देश्य है मेरा?ये जन्म क्यूँ है पाया ?
कब तक मैं हूँ यहां?और कहाँ मैं जाऊँगा ?
क्या छूटेगा मुझसे?और क्या मैं पाऊँगा ?
अपना कौन है मेरा?और पराया है कौन ?
किससे बोलूँ मैं?आखिर क्यों रहूँ मैं मौन ?
जिंदगी प्रश्नों से बुना इक जाल है।
हाँ !ज़िन्दगी इक सवाल है !

क्या जिन्दगी खूबसूरत है?
शायद ये ख़ूबसूरत है------

अनन्त ब्रह्माण्ड में विचरती पृथ्वी ये निराली ,
हर अँधेरी रात्रि के उपरान्त सुबह की ये लाली ,
फूलों के संग खेलते हुए ये भँवरे और तितली ,
सप्तरंगी सा इन्द्रधनुष और चंचल सी मछली ,
मधुर झोंकों संग झूमती बगिया की हरियाली,
क्षितिज पे अम्बर से मिलती धरती मतवाली।
जिंदगी विधाता की गढ़ी मूरत है।
हाँ !ज़िन्दगी खूबसूरत है !

क्या ज़िन्दगी प्यार है?
शायद ये प्यार है------
रिश्तों का प्यार और सारे बंधनों का सार ,
पाने और चाहने की इक मीठी सी फुहार ,
हौसलों से हासिल इक जीत का उल्लास ,
दुःख,सुख,प्रेम का है ये अनोखा अहसास ,
दोनों हाथों में भरके बहार को समेट लेना ,
कुछ प्यार बांटना कुछ हासिल कर लेना।
जिंदगी प्रेम का अजब व्यापार है।
हाँ !ज़िन्दगी इक प्यार है !

क्या जिन्दगी तलाश है?
शायद ये तलाश है ------
लक्ष्य कोई ढूंढना और फिर पाने की प्यास,
सतत् कोशिशों का इक निरंतर सा प्रयास,
तलाश स्वयं की,जन्म-मृत्यु,लोक-परलोक,
क्या जाने दूँ ,क्या सम्हालूँ,किसको लूँ रोक,
ज़िन्दगी की तलाश में उलझ-उलझ गया मैं,
कभी खुद के अधूरेपन से सुलग सा गया मैं,
जिंदगी तो आती-जाती हुई श्वाश है।
हाँ! ज़िन्दगी इक तलाश है!

क्या ज़िन्दगी कहानी है?
शायद ये कहानी है ------
अनादि काल से जीते-मरते असंख्य अफ़साने,
इतिहास के संग जो सुने-कहे गए जाने-अंजाने,
हर जीवन इक दूजे से मिलती-जुलती कहानी है,
स्वयं से स्वयं को रचने की इक कथा अंजानी है,
हमारा भूत और भविष्य ही हमारी ज़िंदगानी हैं,
आज हम वर्तमान हैं जो कल हो जानी पुरानी हैं,
जिंदगी कुछ अपनी कुछ वक्त की मनमानी है।
हाँ !ज़िन्दगी इक कहानी है !

जिंदगी के सवालों को उलझाता-सुलझाता रहा,
जिंदगी की खूबसूरतियों में खुद को डुबाता रहा,
प्यार पगी सी गरमाहटों को हृदय में भरता रहा,
कुछ पाने की तलाश मैं अनवरत ही करता रहा,
अपूर्ण,अतृप्त,अनभिज्ञ सा क्यों महसूस होता है?
सब कुछ है पास फिर भी अन्तर्मन क्यों रोता है?
खूब पढ़ा,जाना,परखा फिर भी अजब ज़िंदगानी है,
जिंदगी की परिभाषा,अब भी उतनी ही अनजानी है।
जिंदगी की परिभाषा-
अब भी उतनी ही अनजानी है।

                                               ( जयश्री वर्मा )




तुम आ जाओ

तुम आ जाओ कि देखो -
सांझ भी तो अब थकी-थकी सी हो चली है ,
गगन में पंछियों की कतारें लग रही भली हैं,
आपस में कह रहे दिनभर के शिक़वे गिले हैं,
नीड़ की ओर लौटते लग रहे कितने भले हैं,
आके देखो मैंने खुद को भी संवार लिया है,
चौखट पे भी रौशन कर लिया इक दीया है ,
कब से तुम्हारी बाट जोह रही हूँ घड़ी-घड़ी ,
हृदय में हलचल,कुछ सोच रही हूँ पड़ी-पड़ी ,
मैंने पांवों में अपने आलता भी तो है लगाया,
दिल के सोए हुए अरमानों को भी है जगाया,
देखो ज़रा पथिकहीन सूनी सी हो गई हैं राहें,
चाँद ने भी फैला दी हैं अपनी चांदनी की बाहें,
रात की शीतलता भी अब दिल जलाने लगी है,
विकलता भी तो किसी की नहीं हुयी सगी है,
दिन भर सुनती हूँ पपीहे की पीहू-पीहू के ताने ,
सखियों की छेड़छाड़ रहती है जाने-अनजाने,
कि यूँ जाया न करो कहीं दूर इतना तुम हमसे ,
रौशनी की तपन से नहीं,मन सुलगता है तम से ,
देखो अब तो घरों की कुण्डियाँ भी हैं लग गईं ,
और सोए हुए अरमानों की नींदें भी जग गईं ,
आ जाओ तुम कि-
अब मेरी विरह व्यथा इज़हार को तो समझो,
बुझे न मन की ये लौ,अरमान को तो समझो,
अब तो ये दीपक भी कंपकंपाने सा लगा है ,
मेरा इंतज़ार और श्रृंगार भी मुरझाने लगा है,
कि आ जाओ अब वरना मैं बेबसी से रो दूँगी,
तुम हो मेरे फिर भी मैं तुम्हें अपना न कहूँगी।


                                                   ( जयश्री वर्मा )