Tuesday, August 19, 2014

तो जी ही लूंगा

मुख फेर रहे हो क्यों मुझसे,जा रहे हो क्यूँ हाथ-साथ छोड़ कर ?        
सच है!जी नहीं पाओगे तुम भी इस तरह,राह अपनी मोड़ कर।

क्यों समेटे लिए जा रहे हो संग अपने,मेरे जीवन के सारे बसंत,
जियूँगा कैसे मैं पतझड़ सी वीरानी,बेखौफ़ ख़ामोशियों के संग।

बिन सहारे मैं तुम्हारे,न रह पाऊंगा,खुद ही से गैर हो जाऊँगा,
ख्यालों में छवि देखूंगा तेरी,लिखके तेरा नाम यूँ ही मिटाऊंगा।  

पर अगर इस तरह जाना ही है,तुम्हें यूँ मुझसे अंजाना बनकर,
ले जाओ सारी यादें अपनी,और फिर देखना न मुझे घूमकर।
  
करो मुझसे कुछ वादे,तुम्हें,तुम्हारे उन अपने लम्हों की कसम,
मेरा ज़िक्र भी नहीं लाओगे,कभी जुबां पर अपनी,ऐ मेरे सनम।

नहीं कमजोर पड़ूंगा,तुम्हारे लिए,जो जीना पड़ा तो जी ही लूंगा,
नहीं करूंगा अब प्रेम किसी से,न रोऊंगा न आहें ही भरूँगा।

शुभकामनाएं देता हूँ क्योंकि,सच्चा दिल सिर्फ दुआएं देता है,
राह में जो बिखरे हों कांटे तो उन्हें चुन के फूल बिछा देता है।

ईश्वर किसी दुश्मन को भी,कभी ऐसा,दर्द भरा दिन न दिखाए ,
कि जिस्म को रहना पड़े अकेले और जान उससे जुदा हो जाए। 

                                                     ( जयश्री वर्मा )


3 comments:

  1. Replies
    1. बहुत - बहुत शुक्रिया आपका सुशील कुमार जोशी जी !

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  2. बहुत - बहुत धन्यवाद यशवंत यश जी !

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