Saturday, November 30, 2013

गर हम न होंगे

मित्रों ! मेरी यह रचना आज के समाचार पत्र नवभारत टाइम्स ( नई दिल्ली / लखनऊ संस्करण )
के दिनॉंक - 4/5/14 , पृष्ठ संख्या -15 पर प्रकाशित हुई है। आप भी इसे पढ़ें।
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क्यों कोख से बुढ़ापे तक तुम यूँ हमारा वजूद मिटाते हो,
कभी हमले,कभी तेज़ाब,कभी शब्दों के नश्तर चुभाते हो।


हम ही हैं जो जन्म दे तुम्हें ममत्व से पोषित करते हैं,
धूल,धूप,आंधी,पानी और बुरी नज़रों से दूर रखते हैं।

हम अपने आँचल की छाँव में तुम्हें महफूज़ बनाते हैं,
तुम्हारा वजूद प्रेरित कर तुममें हौसलों को जगाते हैं।

हम ही हैं जो अहम् को तुम्हारे अंदर जीवित रखते हैं,
रिश्ते,सलीका,दुनिया भर की खुशियाँ तुममें भरते हैं।

माँ,बीबी,बहन,बेटी,बनकर घर को घर हम ही बनाते हैं,
हम हैं जो तुम्हें भाई,पिता,सनम के मायने समझाते हैं।

सोचो गर हम न होंगे तो तुम किससे दिल लगाओगे,
किस संग घर बसाओगे,किस संग सपने सजाओगे।

हम न होंगे गर दुनिया में तो,तुम किसके गीत गाओगे, 
किसपे गीत,गज़ल लिखोगे,किसके किस्से बनाओगे।

अरे ! बिन हमारे अपने जीवन का,वज़ूद तो बता के देखो,
हर गली,मोहल्ले,बाजारों से जरा रंगों को तो हटा के देखो।

अपनी ही ज़िन्दगी की भयावह वीरानियों से कांप जाओगे,
अरे हमें बचाओ,हमें सहेजो,तभी जीवन को जान पाओगे।

                                                                ( जयश्री वर्मा )
















Monday, November 18, 2013

बस तेरा

बगिया के अनगिन फूलों में,अनेकों हैं रंग भरे,
पर हाथ में जो फूल तेरे,बस वही फूल तेरा है।

हज़ारों असफलताओं में,एक जो सफलता है,
नाम जो अमर कर दे,बस वही सर्वस्व तेरा है ।

बहुत सी लालसाएं हों,बहुत सी जिजीविषाएं हों,
हाथ के घेरे में जो सम्हले,उतना जहान तेरा है।

अनगिनत सरगमों में,लहरियों की भरमार हो,
धड़कनों के करीब जो हो, बस वही गीत तेरा है।

दुनियां की भीड़ में,अनगिनत अनजाने चेहरे हैं,
जो सुख-दुःख में संग चले,बस वही मीत तेरा है।

धरा पर देशों के विस्तार कई,और सीमाएं अनंत है,
घरौंदा जो तेरा,बस वही ज़मीं तेरी है,आसमां तेरा है।
                                                                 
                                         ( जयश्री वर्मा ) 







Wednesday, November 6, 2013

ढलने तो दो

नज़रों से नज़रों को,मिलने तो दो,
दिल की कलियों को,खिलने तो दो ।

शामों को ख्यालों से,महकने तो दो,
रातों में ख्वाबों को,बहकने तो दो ।

इन हाथों को हाथों,संग जुड़ने तो दो,
इन क़दमों को एक राह,मुड़ने तो दो ।

सूरज की गर्मी को,पिघलने तो दो,
रात की ठंडक ज़रा,दहकने तो दो ।

अपने जीवन की नइया,खुलने तो दो,
जग की भूलभुलैया से,गुजरने तो दो ।

जमाने के बीच सवाल तो,उठेंगे जरूर,
इन अफसानों को,जवाबों में ढलने तो।
                                                                                                                
                             ( जयश्री वर्मा )