Thursday, October 24, 2013

गर क़ुबूल है

मित्रों ! मेरी यह रचना दिल्ली पत्र प्रकाशन प्र० लिमिटेड द्वारा प्रकाशित " गृहशोभा " पत्रिका में प्रकाशित हुई है।आप भी इसे पढ़ें -

गर क़ुबूल है 

लाख छुपाएं आप दिल के राज़,छुपा नहीं पाती हैं,
इश्क के उठे तूफानों को आप,दबा ही नहीं पाती हैं,
नज़रें इधर-उधर ढूंढती,मुझ पर ही ठहर जाती हैं,
आपकी निगाहें तो सिर्फ,मेरा अक्स ही दिखाती हैं। 

आपको एहसास नहीं है शायद,अपनी हालत का,
आपके दिल में तूफ़ान से,अरमान हैं जो दबे हुए,
कितनी ही शांत दिखें आप,मुखर हो ही जाते हैं,
आपकी जुबान बस,मेरे अफ़साने ही दोहराती है।

चैन न मिलेगा कभी,आपको अपनी शामों में,
यूँ रात भी जाएगी आपकी,आँखों ही आँखों में,
क्यों रातों को पलकें बंद,करने से आप डरती हैं?
जानता हूँ आपकी रातें,मेरे ख्वाब ही दिखाती हैं।

यूँ तो प्यार भी हर किसी के,नसीब में नहीं होता,
इस कदर टूटकर चाहने वाला भी,कहीं नहीं होता,
अगर क़ुबूल है आपको तो,इज़हार भी तो कीजिये,
ज़िन्दगी तो सफ़र है,इंतज़ार में भी गुज़र जाती है।

                                                   ( जयश्री वर्मा ) 




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